नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री
प्रेरक-मार्गदर्शक-स्थापक, श्री वल्लभ गोशाला
ई.स. १९८७ में जब भीषण अकाल पड़ा तब गोमाता की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। इस कठिन समय में श्रीमहाप्रभुजी के सिद्धान्तों की प्रेरणा और श्रीकृष्णभक्ति के बल पर नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री ने समाज में गोरक्षा के महत्व को स्थापित किया।
प्रभुचरण श्रीगुसाँईजी श्रीविठ्ठलनाथजी को बादशाह अकबर के द्वारा प्रदत्त “”गोस्वामी” उपाधि के मूर्तिमान स्वरूप अर्थात् गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री। महाप्रभुजी श्रीवल्लभाचार्यजी ने “”कृष्णसेवा सदा कार्या” का जो उपदेश दिया उसमें भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता प्राप्त करनी हो तो श्रीकृष्ण की सेवा के साथ गोमाता की सेवा भी अत्यंत आवश्यक है। गोपाल की प्रसन्नता गाय की प्रसन्नता में ही है।
आपश्री के हृदय में स्थित यह गोसेवा की भावना आपश्री के आचरण में सदा ही दिखाई देती थी। गायांे के सुख के लिए निरन्तर परिश्रम करके तन-मन-धन से आपश्री प्रवृत्त रहते थे। गो सेवा के लिए आपश्री ने अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। “”आप सेवा करी शीखवे श्री हरि ” इस वैष्णव भावना के अनुरूप आपश्री ने गोसेवा को अपने प्रत्येक आचरण में रखकर अपनी वैष्णवीसृष्टि और समाज के प्रत्येक वर्ग के लोगों को गोसेवा करने की प्रेरणा दी। आपश्री की प्रेरणा से सौराष्ट्र के प्रत्येक गाँव में गोशाला की स्थापना हुयी और आज भी ये सभी गोशालाएँ सुन्दर प्रकार से कार्यरत हैं।
आपश्री के गोसेवा समर्पित जीवन के व्यापक अनुभव के आधार पर केवल गुजरात में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत से अनेक गोप्रेमी मार्गदर्शन प्राप्त करके और आपश्री की आज्ञानुसार गोशाला आदि की स्थापना करके गोमाता-गोवंश के सुख का विचार करते थे। उससे केवल गुजरात ही नहीं,भारत ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व में ऐसा कौन गोप्रेमी होगा जो आपश्री के नाम से परिचित न हो ।
आपश्री स्पष्ट आज्ञा करते हैं कि आज के समय में देश और विश्व की विकट परिस्थिति के निवारण का एकमात्र उपाय गोसेवा ही है। गोपालन-गोसंरक्षण-गोसंवर्धन के द्वारा ही सात्विकता का निर्माण होगा और सात्विकता ही तामसवृत्ति का नाश करके उन्नति की ओर ले जायेगी।
आपश्री के इन उत्तम विचारों की प्रेरणा से प्रेरित होकर गोपालन-गोसंरक्षण-गोसंवर्धन के उत्तम आदर्श को स्थापित करने के लिए आपश्री ने श्रीवल्लभ गोशाला की स्थापना की। इस प्रकार नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री की प्रेरणा,मार्गदर्शन और आशीर्वाद से श्रीवल्लभ गोशाला आज सुन्दर प्रकार से गोमाता के सर्वांगीण सुख का विचार करते हुए कार्यरत है।
श्रीवल्लभाचार्यजी श्रीमहाप्रभुजी के सिद्धान्तांे को सम्पूर्ण जीवन में आचरण में रखकर निजजनांे को अपने उपदेश के द्वारा आचार्य रूप से अपने कर्त्तव्य को जीवनपर्यंत निभाकर कृपा करने वाले अपने समर्थ महापुरुष आचार्यवर्य नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री के चरणारविंद में कोटि कोटि दण्डवत प्रणाम……
नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री के आदर्श को सम्पूर्ण जीवन पर्यन्त आचरण में रखकर आपश्री के आत्मज गोस्वामी श्रीपीयूषबावाश्री बिराज रहे हैं। आपश्री के पिताश्री का जो गो प्रेम था वही गो प्रेम,वही गायांे के प्रति भाव आपश्री के सम्पर्क में आनेवालों को अनुभव हुए बिना नहीं रहता।
गोमाता-गोशाला के प्रति सहज आकर्षण आपकी वाणी-व्यवहार में स्पष्ट दिखाई देता है। नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचंद्रजी महाराजश्री के द्वारा स्थापित श्रीवल्लभ गोशाला के उत्तरोत्तर विकास के लिए आपश्री निरंतर चिन्तनशील रहते हैं। गोमाता-गोवंश सदा प्रसन्नतापूर्वक आनन्द से विराजें इसके लिए संस्कृति के संरक्षणपूर्वक आधुनिक तकनीक के उपयोग से ई.स.२०२१ में गोशाला के जीर्ण विभागों का जीर्णोद्धार किया गया। इस जीर्णोद्धार के कार्य में अत्यन्त परिश्रम लेकर आपश्री ने अपने सतत मार्गदर्शन के द्वारा यह कार्य पूर्ण किया।
गोस्वामी श्रीपीयूषबावाश्री का स्पष्ट अभिगम रहा है कि “”श्रीमहाप्रभुजी श्रीवल्लभाचार्यजी के वंशज आचार्य रूप में श्रीवल्लभ के सिद्धान्तों को आचरण में रखकर वैष्णवसृष्टि को प्रेरणा दें यह हमारा कर्त्तव्य है।”अपका यह अभिगम आपके आचार-विचार,वाणी-व्यवस्था में स्पष्ट दिखाई देता है। आपश्री के इस कर्त्तव्य को पूर्ण करने के लिए आपश्री ने चिंतन द्वारा प्रेरणा प्राप्त की, कि आधुनिक शिक्षण और टेक्नोलोजी के दुरुपयोग से बालक संस्कारविहीन हो रहे हैं । संस्कारविहीन व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में सुख और संतोषपूर्वक उन्नति प्राप्त नही कर सकता। परंतु बाल्यावस्था से ही संस्कारों का सिंचन हो तो ही वह फलरूप बनता है, और दृढ बनता है। संस्कारों से ही मानवजीवन की शोभा है। संस्कार ही जीवमात्र की आवश्यक्ता है।
आपश्री के इस चिंतन को वास्तविक रूप देने के लिए बालकों में संस्कारों का सिंचन हो इस हेतु से पुष्टिसंस्कार पाठशाला की स्थापना की गई है। बालकों के साथ युवाओं में भी वैष्णवता, धर्मनिष्ठा, राष्ट्रनिष्ठा, मानवता आदि गुणों का विकास हो इस लिए पुष्टिसंस्कार विद्यापीठ का प्रारम्भ हुआ। वैष्णवों में स्वमार्गनिष्ठा दृढ बने और श्रीवल्लभाचार्यजी के सिद्धांतों को उनके मूल स्वरूप जान सकें और तदनुसार कार्य कर सकें इसलिए पुष्टिसंस्कार परिवार के माध्यम से सत्संग के द्वारा अनेक जीव स्वमार्गनिष्ठ बन रहे हैं।
अभी भी यह यात्रा यही पर न रूककर पुष्टिसंस्कार पाठशाला के माध्यम से रोपित बीज आज “”पुष्टिसंस्कारधाम” के रूप में बटवृक्ष का आकार ले रहा है।
समग्र वैष्णवसृष्टि, समाज, राष्ट्र और विश्व की संर्वागीण उन्नति के लिए सदा चिंतनशील हमारे आचार्य गोस्वामी श्रीपीयूषबावाश्री के चरणारविंद में कोटि कोटि दण्डवत् प्रणाम…