
श्रीवल्लभ गोशाला में हो रहा, गोमाता और गोवंश का संवर्धन
गोसंवर्धन अर्थात् गोपालन। जो भारतीय संस्कृति और निष्ठा का प्रतीक है। गोमाता और गोवंश की अमूल्य विरासत हम सही अर्थ में संभाल सकें, इस हेतु को साकार करने के लिए श्रीवल्लभ गोशाला का निर्माण हुआ है। यहाँ गोमाता-गोवंश को अच्छी गुणवत्ता वाली घास, जल, विशाल जगह, शुद्ध हवा और पर्याप्त सूर्य प्रकाश के साथ प्राकृतिक वातावरण मिलने से गोमाता-गोवंश की देखभाल और संवर्धन का कार्य बहुत अच्छे प्रकार से हो रहा है। गोमाता-गोवंश को आहार स्वरूप में गो आधारित खेती से उत्पन्न हरी और सूखी घास दी जाती है, एतदुपरांत सप्ताह में एक बार ज्वार और औषधि स्वरूप में क़डवा नीम दिया जाता हैं।
गोशाला परिसर का गो आहार विभाग में १२ प्रकार की सामग्रियाँ मिश्रित करके गोमाता-गोवंश के लिए शुद्ध और पौष्टिक आहार तैयार किया जाता है। प्रतिदिन यह आहार गोमाता-गोवंश की उम्र के आधार पर मात्रानुसार दिया जाता है। गोशाला में गोमाता-गोवंश को गुणवत्तायुक्त आहार पूर्णरूप से प्राकृतिक वातावरण मिलने के कारण उनमें किसी प्रकार की बीमारी प्रवेश नही करती। इसके अतिरिक्त सावधानी के भागरूप यहाँ दो पशुचिकित्सक निरंतर देख-रेख करते हैं।
सगर्भा गोमाता के लिए अलग निवासस्थान की व्यवस्था की गई है, जहाँ सीसीटीवी केमरा की मदद से पशुचिकित्सक हमेशा उनका ध्यान रखते हैं। गोमाता के प्रसवसमय से लेकर १५ दिन तक उनका बछ़डा ही पयपान करता है, इन गोमाता का दूध दूसरे किसी भी उपयोग में नही लिया जाता है। उसके बाद 7 महिनों तक उनके बछ़डे को उनके साथ ही रखा जाता है, इस समय दो स्तनों का दूध बछ़डा ही पीता है, और दूसरे दो स्तनों का दूध सात्त्विक दूध के रूप में उपयोग किया जाता है। गोखिरक में हाथ से ही दोहन कार्य किया जाता है, जिसमें गोपालक हमेशा गोसेवा में तत्पर रहते हैं। दोहन करते समय गोखिरक में मधुर संगीत बजाया जाता है, जिसका दोहनक्रिया में सकारात्मक असर दिखाई देता है।
सर्दियों में गोखिरक को चारों ओर से कंतान (टाट) से ढँका जाता है, एतदुपरांत गोमाता को स्वास्थ्यवर्धक गाजर खिलाईं जातीं हैं, जिससे गोमाता को ठंड से राहत दे सकें। एतदुपरांत ग्रीष्मकाल में गर्मी से रक्षण के लिए प्रत्येक गोमाता को गु़ड का पानी पिलाया जाता है, अन्य समय खरबूज खिलाया जाता है। गोखिरक में मक्खी-मच्छर जैसे जीवजंतुओं का उपद्रव न हो, इसके लिए गोखिरक में हरी चाय और अ़डूसे के पौधों की बुआई की जाती है। एतदुपरांत नियमितरूप से औषधियुक्त धुँआ भी किया जाता है।