
Goshala History
अपने आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय गोवंश का पालन, रक्षण और संवर्धन करने के आदर्श को प्रस्थापित करने का संनिष्ठ प्रयास अर्थात् श्रीवल्लभ गोशाला। साथ ही साथ श्रीवल्लभ गोशाला एक मातृसंस्था के रूप में भी कार्य कर रही है। जहाँ गोमाता-गोवंश को आनन्दपूर्वक विराजित किया गया है और यहाँ आने वाले श्रद्धालु गोमूल्यों को पूर्ण अर्थ में समझें इसके लिए भी विशेष प्रयत्न हो रहे हैं।
श्रीवल्लभ गोशाला की स्थापना किस प्रकार हुयी?
ई.स. १९८७ में जब भीषण अकाल प़डा, तब मनुष्यों को पीने के लिए पानी भी अप्राप्य हो गया। इस समय गोमाता की दशा बहुत दयनीय हो गयी। इस विकट परिस्थिति में श्रीवल्लभाचार्यजी के सिद्धान्तों की प्रेरणा और श्रीकृष्णभक्ति के बल से गोस्वामी श्रीकिशोरचन्द्रजी महाराजश्री ने महाप्रभुजी श्रीवल्लभाचार्यजी के सिद्धान्तों का शुद्ध स्वरूप वैष्णवों को समझाया और समाज में गोरक्षा के महत्व को प्रस्थापित किया।
गोस्वामी श्रीकिशोरचन्द्रजी महाराजश्री की प्रेरणा से गोवंश की रक्षा के लिए प्रत्येक गाँव में गोपालन केन्द्र की स्थापना हुयी। अकाल की इस भीषण परिस्थिति में ३६००० गोवंश का रक्षण हुआ और गोरक्षा अभियान का शुभारम्भ हुआ।
आज यह अभियान विशाल वटवृक्ष बनकर प्रत्येक गाँव में गोशाला की स्थापना द्वारा सुव्यवस्थित आयोजन का स्वरूप ले चुका है। वाडला गाँव में स्थित “श्रीवल्लभ गोशाला’, गोसेवा के आदर्श स्वरूप को प्रस्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सम्पूर्ण राष्ट्र में अपनी गोमाता-गोवंश आनन्द से विराजें और गोहत्या का कलंक दूर हो इस कर्तव्य भावना का साक्षात्कार करने के लिए श्रद्धालु और कर्मनिष्ठ वैष्णव आगे आये और “गोस्वामी श्रीपुरूषोत्तमलालजी गोसेवा ट्रस्ट’ की रचना हुयी और गोस्वामी श्रीकिशोरचन्द्रजी महाराजश्री की प्रेरणा से यह संस्था “श्रीवल्लभ गोशाला’ का निर्माण और संचालन करे ऐसा निर्णय किया गया।
गोमाता-गोवंश को प्राकृतिक, सुन्दर, स्वच्छ और सानुकूल वातावरण मिले और बरसात के पानी के भराव और कीच़ड का डर ना रहे ऐसी भूमि का चयन जूनागढ के नजदीक वाडला गाँव में किया गया।
गोशाला के लिए भूमिपूजन चिरायुष्मान् श्रीपीयूषबावाश्री के हाथ से किया गया। श्रीवल्लभ गोशाला में गोस्वामी श्रीअनिरूद्धलालजी महाराजश्री के द्वारा गोमाता का मंगलपूजन करके, महन्तश्री गोपालानन्दजी (अध्यक्षश्री, भारत साधुसमाज) की विशेष उपस्थिति में गोमाता-गोवंश को “श्रीनन्दबावा के प्राकट््य दिवस माघमास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि के शुभदिवस पर गोशाला में विराजित किया गया। वर्ष २००४ से यहाँ गोमाता-गोवंश आनन्दपूर्वक विराज रहे हैं।
आज के समय में हमें प्राप्त टेक्नोलोजी की सहायता लेकर और अपनी मूल संस्कृति को जानने के लिए जीर्ण हुए कितने ही विभागों के साथ “श्रीवल्लभ गोशाला’ का जीर्णोद्धार वर्ष २०२१ में किया गया।
श्रीवल्लभ गोशाला के उद्देश्य
दृष्टिकोण :
सभी शास्त्रांे मेंे उपदिष्ट गोमाहात्म्य को देखें तो एकबात तो स्पष्ट समझ सकते हैं कि गोमाता-गोवंश समग्र सृष्टिके आधार हैं । गावो विश्वस्य मातर:,मातर: सर्वभूतानां के उपदेश के द्वारा अपने शास्त्र गाय को समग्र विश्व की और समग्र जीवों की माता का स्थान देते हैं । माता प्रसन्न हो तो वह अपनी संतानों का सर्वांगीण पोषण उत्तम प्रकार से कर सकती है ।
तदुपरांत सृष्टि के तथा सृष्टि में रहनेवाले समग्र जीवों का सुख और आनन्द का मूल सात्विकता है और इस
सात्विकता का आधार गोमाता हैं। इस दृष्टिकोण से विचार करें तो हम सबके सुख और आनन्द की स्थिरता की वृद्धि के लिए गोआश्रय आवश्यक है। गो आश्रय अर्थात गाय के इस महत्व को समझकर आज के समय में गायों की जिस प्रकार उपेक्षा की जाती है इस के प्रति जाग्रत हों । गोसेवा,संवर्धन,संरक्षण के लिऐ जाग्रत हांे और समाज को भी जाग्रत करें।
ध्येय :
उपरोक्त दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर जिन्हांेने अपना सम्पूर्ण जीवन गोसेवा के लिए तन-मन-धन से समर्पित कर दिया ऐसे अपने आचार्यवर्य नि.ली. गोस्वामी श्रीकिशोरचन्द्रजी महाराजश्री की प्रेरणा से गोसेवा,गोसंवर्धन,और गोसंरक्षण के मूल ध्येय को लक्ष्य मंे रखकर श्रीवल्लभ गोशाला की स्थापना की गयी। गोमाता-गोवंश के सर्वांगीण
सुख को ध्यान में रखकर बहुत सुंदर और सुखदायक व्यवस्थाओं के साथ इस गोशालाका आपश्री के द्वारा निर्माण करवाया गया। गोमाहात्म्य समझकर गोसेवा को आचरण मंे रखकर,गोमाता की पूर्ण प्रसन्नता और सुख का विचार यही श्रीवल्लभ गोशाला का उद्देश्य है। इसके साथ समाज भी इससे प्रेरणा लेकर उत्तम प्रकार से गोसंवर्धन,संरक्षण के लिए जाग्रत हो ऐसी भावना इस संस्था की है।